Tuesday, November 18, 2008

बिस्तर तक पहुंची मंदी

बिस्तर तक पहुंची मंदी


दुनिया भर में चल रही आर्थिक मंदी ने लोगों की जिंदगी के हर पहलू को प्रभावित किया है। इसके मद्देनजर मनोवैज्ञानिक अब इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि आर्थिक मंदी किस तरह से लोगों की सेक्सुअल लाइफ पर असर डाल रही है। इस बाबत शुरुआती नतीजे कुछ दिलचस्प नतीजे पेश कर रहे हैं।



सेंसेक्स का असर सेक्स पर भी

शुरुआती पड़ताल बताते हैं कि आर्थिक मंदी का भारत में बेडरूमों पर काफी असर देखने को मिला है। इस संबंध में किए गए आकलन में पता चला है कि जिस तरीके से सेंसेक्स ऊपर-नीचे होता है, उसी तरह से लोगों की सेक्सुअल लाइफ भी प्रभावित होती है। मंदी से कई भारतीयों के सेक्सुअल लाइफ के ठंडा पड़ने की आशंका है।










अंतरराष्ट्रीय स्टडी

बेडरूम में फाइनेंशियल क्राइसिस के असर की स्टडी के लिए भारत, अमेरिका और यूरोप में जॉइंट रिसर्च की जा रही है। इस स्टडी में वर्ल्ड असोसिएशन ऑफ सेक्सोलॉजिस्टस की भी मदद ली जाएगी। स्टडी में फाइनेंशियल क्राइसिस की वजह से पूरी दुनिया में सेक्सुअल लाइफ के असर के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी।




सेपरेशन का मुकाम

इस रिसर्च में अहमदाबाद के सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. पारस शाह भारतीय रिसर्च की अगुवाई कर रहे हैं। उनके साथ न्यू यॉर्क के एक्सपर्ट जूडी कुरियनस्की भी साथ होंगे। ये रिसर्चर ग्लोबल मंदी के सेक्सुअल लाइफ पर पड़ने वाले असर की पूरी तस्वीर को स्वीडन में 2009 होने वाले वर्ल्ड असोसिएशन ऑफ सेक्सोलॉजिस्ट्स के कॉन्फ्रेंस में पेश करेंगे।

डॉ. पारस शाह कहते हैं कि फाइनेंशियल क्राइसिस के मद्देनजर यह स्टडी काफी अहम है, क्योंकि सेक्स रिश्तों को बनाए रखने में अहम रोल निभाता है और पैसे गंवाने की वजह से कई कपल्स सेपरेशन के कगार पर पहुंच चुके हैं।


ज्यादार युवा हैं इसके शिकार

डॉ. शाह ने अब तक 97 केसों को स्टडी के लिए शामिल किया है। इनमें शेयर बाजार में पैसा गंवाने की वजह से 15-20 कपल्स के बीच तलाक लेने की नौबत तक आ पहुंची है।


पैसा गंवाने की वजह से इन कपल्स के बीच शारीरिक दूरियां भी बढ़ गई हैं। खास बात यह है कि इनमें ज्यादातर की उम्र 35 साल से नीचे है।





सेक्स तनाव दूर करने का जरिया नहीं

डॉक्टरों का कहना है कि सर्वेक्षण बताते हैं कि फाइनेंशियल क्राइसिस पुरुषों में टेस्टोटेरेन लेवल को कम कर रहा है, जिसकी वजह से वे अपनी सेक्सुअल क्षमता गवां रहे हैं।


डॉ. शाह कहते हैं कि 2002 में गुजरात दंगों के बाद भी इसी तरह के रिसर्च किए गए थे। इससे पता चलता है कि भारतीय सेक्स को तनाव दूर करने का जरिया नहीं बना पाते हैं।